मारवाड़ी लोगां रौ विसवास हिंदूवाद रै साथै अनैक जीववादी रीतियों रौ मिळीयो-जुळियो अभ्यास है। जद तांई मिनख री मौत हो जावै है तद ऐ लोग आटे अर पांणी रा लाडू बणावै है अर वो कागळौ रै वास्तै छौड़ दैवै है। अगर वो कागळौ उण लडू नै खाणै लाग जावै तो इणरौ मतलब ओ है कि मरयोड़े री आत्मा जिणरै हाथ सूं खावै उण मिनख माथै विसवास करै है। पण चौखी बात तो आ है कि जिकौ लोग यीसु मसीह नै स्वीकार कर लिया है उणौरै लाडूओं नै कोई पंखेरू नीं खावै।
राजस्थान मांय जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर, जालोर, पाली जिलों रै इलाकों मांय रा लोगां नै मारवाड़ी कैवै है, अर चावै वे किणी भी जाति रा लोग हो। खास करनै ऐ लोग इण इलाकें मांय रैवै है अर संसार भर मांय फैल गिया है। राजस्थान रै इतिहास में व्यापारियों मे मशहूर मारवाड़ी रौ कांम भारत अर विदेशों मांय भी भैजियौ जावै है। ऐ लोग गाँव अर सैहर दोनों इलाकों मांय रैवै है। गाँवों में रैणै वाळा घणा कर किसान है अर प्रवासी खेतीहर मजदूर है। आपरी खास खेती री उपज रै वास्तै ऐ लोग घणा बारिस ऊपर निर्भर रैवै है जिणमें बाजरी, गेंहु, मूंग, मोठ, तिल, ग्वार, अर मूगफळी आदि है। सगळी अलग-अलग जाति अपणौ-अपणौ कांम करै है। इणमे ऊं घणा लोग ऐड़ा है जिकौ लकड़ी रा मशहूर कारीगर है अर दुजा लोग कपड़े री फैक्ट्रियों में कांम करनै मजदूरी करै है। सैहर में रैण वाळा लकड़ी रौ कांम करै, अर भाटै रौ अर की तरैह रौ कांम करनै आपरौ घर परिवार चलावै है। ओ इलाकों ठण्डी मांय ठण्डो अर गरमी मांय गरम घणौ रैवै है। जिण कारण लोगां नै तकलीफ उठाणी पड़ै है।
मारवाड़ी लोग आपरौ पेहनावों, रीत-रिवाज अर भासा में खुद री अलग पहचाण राखै है। गाँवों अर सैहर मांय लुगायां घणा कर मारवाड़ी डेस पैरै है अर वो कपड़ो सूं पिछांणं लैवै है। अर गाँवों मांय लड़कियों नै भी मा-बाप मारवाड़ी कपड़ा पैरणै मे सौभा मानै है अर हरैक मौसम मांय वो कपड़े पैरिया जावै है। मारवाड़ी लोग खास करनै हिंदू है अर घणी जगा जैन लोगां नै भी इणमे देख सकौ। इण समुदाय रा कम लोग यीसु मसीह नै जाणै है। मारवाड़ी इलाके मांय एक घणौ पुराणौ सी’ एन’ आई’ कलीसिया भवन है। जिकौ 75 साल ऊं भी घणौ पुराणौ है अर इलाके मे मसीहत रै पुराणे रिवाज रौ समर्थन करै है। एक अन्य मिशनरी 1963 में मारवाड़ी इलाके मे आयौ अर इण लोगां रै बीच कलीसिया स्थापना रौ कांम संरु करयो। आज आ कलीसिया भवन देख सकौ हो अर उठै हरैक रविवार रा अनेक विसवासी भैळा होवै है।